
भारत के संविधान में अभियुक्त व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारो की व्याख्या की गई है, संविधान के अनुच्छेद-20 में अभियुक्त व्यक्ति को अपराधों के लिए द्वेषसिद्ध के सम्बंध में निम्न आशय का संरक्षण दिया गया है जैसे कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए तब तक सिद्ध दोष नहीं ठहराया जाएगा जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय जो अपराध के रूप में आरोपित है किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है या उससे अधिक जुर्माना का भागी नहीं होगा जो उसे अपराध के किए गए जाने की समय पर प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी।
किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अधिरोपित और दंडित नहीं किया जाएगा, किसी अपराध के लिए अभियुक्त व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन गारंटी कृत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूल अधिकार साधारण नागरिकों के समान अभियुक्त तथा द्वेषसिद्ध बंदियों को भी उपलब्ध है, इसके अतिरिक्त अभियुक्त को यह अधिकार है कि उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया अपनाए बिना हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। संविधान के अनुच्छेद 22 में कुछ दशाओं में उसे गिरफ्तारी और विरोध संबंधी मूल अधिकार उपलब्ध है जैसे किसी व्यक्ति को जो गिरफ्तार किया गया है ऐसी गिरफ्तारी के कारण से यथाशीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा में निरूद्ध नहीं रखा जाएगा या अपनी रुचि के विधि व्यवसाय से परामर्श करने और प्रतिरक्षा करने की अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा, ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अधिक से अधिक 24 घंटे की अवधि में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा, संविधान का यह अनुच्छेद 22 प्रत्येक नागरिक को निम्नलिखित मूल अधिकार प्रदान करता है जैसे गिरफ्तारी पर गिरफ्तारी के आधारों की जानकारी अपने पसंद की अधिवक्ता से परामर्श करने और प्रतिरक्षा करने का अधिकार 24 घंटे की अवध में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी का अधिकार, साथ ही अनुच्छेद 21 के अधीन अभियुक्त को शीघ्र विचरण तथा मुफ्त कानूनी सहायता का भी संविधानिक अधिकार है अभियुक्त सहित प्रत्येक व्यक्ति को पुलिस अत्याचार के लिए हर्जाना पाने का अधिकार है। इसके साथ-साथ ही अभियुक्त को अन्वेषण के दौरान अन्वेषण अधिवक्ता की सुविधा उसकी मांग पर उपलब्ध कराई जा सकती है यह सुविधा पुलिस के द्वारा अभियुक्त उपलब्ध करानी होगी, पुलिस अधिकारी अभियुक्त को अकेले में पूछताछ कर सकता है लेकिन पुलिस अधिकारी हिरासत में पूछताछ के लिए दमनकारी व्यवस्था नहीं अपना सकता है वह ऐसी कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है जिससे अभियुक्त भयभीत होकर अपने ही खिलाफ अपराध का इकबाल करें, अभियुक्त को अनुच्छेद 20(3) के अधीन चुप रहने का अधिकार प्राप्त है।