
भारतीय कानून व्यवस्था के अनुसार किसी व्यक्ति को वयस्क तभी कहा जा सकता है जब वह अठारह वर्ष की उम्र पूरी कर चुका हो, भारतीय समाज में प्राय: जब लड़की की उम्र अठारह वर्ष पूरी हो जाती है तो उसे पूरी तरह से परिपक्व मान लिया जाता है और उसे अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने के लिए पर्याप्त परिपक्व मान लिया जाता है ऐसा माना जाता है कि वह जो भी निर्णय लेगी, वह निर्णय लेने में सक्षम है। ठीक उसी प्रकार लड़के को भी अठारह साल की उम्र पूरी कर लेने पर परिपक्व मान लिया जाता है और यह माना जाता है कि वह जो भी निर्णय लेगा वह सक्षम है, हालांकि भारतीय समाज में प्राय: लड़की और लड़का को शादी करने के लिए उम्र क्रमश: अठारह वर्ष और इकीस वर्ष माना जाता है।
अभी हाल ही में एक अहम फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी वयस्क को अपनी पसंद की जगह जाने, अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने या अपनी इच्छा या इच्छा के अनुसार विवाह करने से नहीं रोक सकता क्योंकि यह एक अधिकार है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद -21 से प्राप्त है।
अनुच्छेद -21 एक अधिकार ही नहीं है बल्कि मूल अधिकार भी है जो किसी से छीना नहीं जा सकता है क्योंकि मूल अधिकार प्रकृति से प्रदत हैं, यदि जो प्रकृति को पसंद हैं वह सबको पसंद होता है क्योंकि प्रकृति बिना किसी भेदभाव के सबको समान नजर से देखती है, इसलिए समाज के किसी भी इंसान को व्यस्कों के अधिकारों से छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है यदि कोई व्यक्ति ऐसा दुस्साहस करेगा तो उसे दंड का भागी होना पड़ेगा, जब वयस्क व्यक्ति अपने जीवन के बारे में स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हो जाते हैं तो फिर अन्य किसी व्यक्ति को हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं।