सेशन न्यायालय में अभियोजन के साक्ष्य का प्रस्तुतीकरण एक महत्वपूर्ण कानूनी कार्य है जिसका निर्वाह लोक अभियोजक को उत्तरदायी रीति से करना होता है, यदि लोक अभियोजक जिम्मेदारी अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करते हैं तो इसका सीधा फायदा अभियुक्त को मिलता है और अभियुक्त द्वेषमुक्ति के निष्कर्ष पर पहुंच जाता है, लोक अभियोजक के दायित्व में वृद्धि इस कारण भी हो जाती है कि यह विधि की सुस्थापित प्रक्रिया है कि अभियुक्त दोषी है इस तथ्य को, यहां तक उसके विरुद्ध आरोपित आरोप के अपराध के प्रत्येक संघटक को सिद्ध करने का भार उस पर है। यह भार उस स्थिति में भी बना रहता है जब किसी अपराध का सृजन किसी कानूनी उपधारणा से है और जहां अपराधिक तथा प्रतिसिद्ध वस्तु का कब्जा मात्र दंडनीय अपराध है।
इतना ही नहीं इस सुस्थापित कानूनी स्थिति से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि अभियुक्त के केस की कमियों का लाभ अभियोजक को नहीं मिलता है उसे तो अपने पैरों पर ही खड़ा रहना है।लोक अभियोजक को यह भी समझना होगा कि मात्र संदेह कितना भी घोर क्यों न हो, प्रमाण का स्थान नहीं ले सकता है इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए लोक अभियोजक को सफ़ल अभियोजन हेतु अपनी तरफ से अपना साक्ष्य जिम्मेदारी से प्रस्तुत करना चाहिए तभी अभियोजन पक्ष को न्याय मिल सकता है।