
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक मामले में मुख्य मुद्दा यह आया कि क्या गम्भीर चोटों की अनुपस्थिति धारा-307 आइपीसी के तहत आरोपों को खारिज कर सकती जो हत्या के प्रयास से संबंधित है, कोर्ट ने कहा कि धारा- 307 आइपीसी (अब बीएनएस में धारा-109) के लिए यह आवश्यक नहीं है कि चोटें जानलेवा हो,लेकिन यह आवश्यक है कि अभियुक्त ने मृत्यु या गम्भीर शारीरिक क्षति पहुंचाने के इरादे से काम किया हो।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि धारा- 307 आइपीसी के तहत मामलों में केवल चोटों की सीमा नहीं, बल्कि इरादा भी महत्वपूर्ण है।
अपने पिछले फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा है कि धारा-307 आइपीसी के तहत द्वेषसिद्ध के लिए यह आवश्यक नहीं है कि मौत का कारण बनने वाली शारीरिक चोटें पहुंचाई गई हों, बल्कि आरोपी का इरादा या ज्ञान, जो उनके कार्यों के माध्यम से प्रदर्शित होता है, सबसे महत्वपूर्ण है।
कोर्ट ने आगे कहा कि यदि कार्य मृत्यु या गम्भीर शारीरिक क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से किया जाता है तो चोट की सीमा अप्रासंगिक है, चोटों की मामूली प्रकृति धारा -307 आइपीसी के तहत आरोपों का खारिज करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं है, जो मायने रखता है वह यह है कि आरोपी का इरादा और परिस्थितियां जिसके तहत यह कार्य किया गया। यदि मध्यवर्ती परिस्थितियां का अभाव रहता तो परिणाम मृत्यु होता तो ऐसी परिस्थिति में मामूली चोटें के आधार पर हत्या के प्रयास को खारिज नहीं किया जा सकता है।