
Cropped image of business people discussing financial report at meeting
भारतीय न्याय प्रणाली में क्राइम को नहीं बल्कि अपराध (ऑफेंस) को दण्डित किया जाता है। क्राइम सभ्य समाज के प्रति विद्रोह है, भारतीय आपराधिक व्यवस्था में क्राइम दंडनीय नहीं है। क्योंकि क्राइम नैतिक भी हो सकता जो घृणित कृत्य तो है पर किसी भी संहिता या अधिनियम में दंडनीय नहीं है अत: न्यायालय ऐसे क्राइम को दण्डित करने के लिए सक्षम नहीं है। न्यायालयों द्वारा अपराध (ऑफेंस) दंडनीय है।
शब्द “अपराध” दंड प्रक्रिया संहिता की धारा – 2 (ढ ) में परिभाषित है अब नए कानून (बीएनएसएस में धारा -2(24) में) परिभाषित है, इसी शब्द को धारा -40 में भारतीय दंड संहिता में भी परिभाषित किया गया है दंड प्रक्रिया संहिता में अपराध की दी गई परिभाषा, साधारण खंड अधिनियम 1897 में दी गई परिभाषा के समान है , “अपराध” शब्द से आशय ऐसे कार्य या लोप से है जो तत्समय किसी विधि या दंड से दंडनीय बना दिया गया हो यह विधि भारतीय दंड संहिता भी हो सकती है या फिर कोई अन्य विधि भी हो सकती है केवल यह आवश्यक है कि यह विधि उस परिक्षेत्र के अंतर्गत प्रवृत्त होनी चाहिए जिसमें न्यायालय की आधिकारिता है। भारतीय दंड विधान की धारा -4 के आधार पर अब भारत से बाहर भी कार्य वा लोप भी अपराध के अंतर्गत आता है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा -188भी अभिप्रेत है ।
अपराध को गठित करने वाला कार्य या लोप दंडनीय बनाया गया है, न कि वह संव्यवहार जिसमें यह कार्य किया गया है। दो व्यक्तियों पर एकल कार्य से एक गोली चलाना केवल एक अपराध है, इसी प्रकार एक से अधिक व्यक्ति कूटरचना के लिए सम्मिलित होते हैं तो प्रत्येक विशिष्ट व्यक्ति का कार्य दूसरे के कार्य से सुभिन्न है, संव्यवहार गठित नहीं होता है। अपराध और अपराध के अभियोजन में अंतर, अपराध विधि द्वारा कार्य या लोप का संकलन है जबकि अभियोजन ऐसे कार्य अथवा लोप के सम्बंध में न्यायालय का न्याय निर्णयन पाने के लिए प्रक्रिया को संज्ञापित करता है। प्रत्येक अपराध में प्रथमत्त:अपराध करने का आशय होता है, द्वितीय अपराध करने की तैयारी की जाती है, तृतीय अपराध करने का प्रयत्न किया जाता है, तब जाकर अपराध पूर्ण होता है, अपराध के गठित के कुछ तत्व इस प्रकार हैं, जैसे आशय, अपराधिक मन: स्थिति, ज्ञान, हेतुक का महत्व, निर्द्वोषिता अपराध की तैयारी, अपराध करने का प्रयत्न, तथ्य विषयक भूल,कानून विषयक भूल आदि नहीं बिन्दुओं से अपराध का गठन होता है, इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भारतीय न्यायिक प्रणाली “क्राइम” को नहीं बल्कि अपराध (ऑफेंस) को दण्डित करती है।